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सोरायसिस का आयुर्वेदिक समाधान: शासकीय (स्वाशासी) आयुर्वेद महाविद्यालय एवं अस्पताल, रीवा

Psoriasis is a chronic skin disease

सोरायसिस का आयुर्वेदिक समाधान: शासकीय (स्वाशासी) आयुर्वेद महाविद्यालय एवं अस्पताल, रीवा


सोरायसिस: एक परिचय

सोरायसिस एक दीर्घकालिक त्वचा रोग है, जो प्रतिरक्षा प्रणाली में गड़बड़ी के कारण होता है। इस रोग में त्वचा पर मोटे, लाल धब्बे बन जाते हैं, जो खुजली, जलन और असुविधा का कारण बनते हैं। यह धब्बे सामान्यतः कोहनी, घुटने, सिर और पीठ के निचले हिस्से पर होते हैं, लेकिन शरीर के किसी भी हिस्से पर उभर सकते हैं। सोरायसिस का सीधा प्रभाव केवल त्वचा पर ही नहीं, बल्कि मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। यह रोग व्यक्ति के जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकता है।

आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से सोरायसिस का उपचार

आयुर्वेद एक प्राचीन चिकित्सा प्रणाली है, जो शरीर, मन और आत्मा के संतुलन पर आधारित है। आयुर्वेद के अनुसार, सोरायसिस का कारण दोषों का असंतुलन है, विशेषकर वात और कफ दोष का। जब ये दोष असंतुलित होते हैं, तो शरीर में विषैले तत्व जमा होने लगते हैं, जो त्वचा की समस्याओं को जन्म देते हैं। आयुर्वेद में सोरायसिस का उपचार दोषों के संतुलन को बहाल करने, विषैले तत्वों को निकालने और शरीर की प्राकृतिक शुद्धि पर केंद्रित होता है।

शासकीय आयुर्वेद महाविद्यालय और चिकित्सालय, रीवा की विशेषताएँ

मध्य प्रदेश के रीवा में स्थित शासकीय आयुर्वेद महाविद्यालय और चिकित्सालय एक प्रतिष्ठित संस्थान है, जहाँ सोरायसिस और अन्य त्वचा रोगों का आयुर्वेदिक उपचार किया जाता है। यहाँ पर अनुभवी आयुर्वेदिक चिकित्सक और पंचकर्म विशेषज्ञ मौजूद हैं, जो प्रत्येक मरीज की समस्याओं को समझकर व्यक्तिगत उपचार योजनाएँ तैयार करते हैं।

सुविधाएँ और सेवाएँ:

  1. विशेषज्ञ आयुर्वेदिक चिकित्सक:
  • इस अस्पताल में अनुभवी आयुर्वेदिक चिकित्सक और शोधकर्ता कार्यरत हैं, जो विभिन्न प्रकार के रोगों, विशेषकर सोरायसिस के उपचार में विशेषज्ञता रखते हैं।

    2..पंचकर्म उपचार:

पंचकर्म आयुर्वेदिक चिकित्सा का एक महत्वपूर्ण अंग है, जो शरीर की शुद्धि, दोषों के संतुलन और रोगों के उपचार में सहायक होता है। पंचकर्म के माध्यम से शरीर के विषैले तत्वों को निकालने और रोग को जड़ से खत्म करने का प्रयास किया जाता है।

    3.हर्बल औषधियाँ:

    • अस्पताल में विभिन्न प्रकार की हर्बल औषधियों का उपयोग किया जाता है, जो त्वचा की मरम्मत, सूजन को कम करने और खुजली को दूर करने में सहायक होती हैं।

    4.संपूर्ण आहार और जीवनशैली मार्गदर्शन:

    आयुर्वेद में आहार और जीवनशैली का महत्वपूर्ण स्थान है। यहाँ के चिकित्सक मरीजों को उनकी समस्या के अनुसार उचित आहार और जीवनशैली के बारे में सलाह देते हैं।

      आयुर्वेदिक उपचार के प्रमुख घटक

      1. पंचकर्म:

      पंचकर्म आयुर्वेद का शुद्धिकरण उपचार है, जिसका उद्देश्य शरीर के दोषों को संतुलित करना और विषैले तत्वों को निकालना है। पंचकर्म के मुख्य चरण इस प्रकार हैं:

      • वमन (उत्सर्जन): इस प्रक्रिया में औषधियों के माध्यम से शरीर से विषाक्त पदार्थों को निकालने का प्रयास किया जाता है।
      • विरेचन (पर्जन): इसमें जड़ी-बूटियों का उपयोग करके आंतों की सफाई की जाती है।
      • बस्ती (एनीमा): यह प्रक्रिया बड़ी आंत को शुद्ध करने के लिए की जाती है।
      • नस्य (नाक द्वारा शोधन): इस प्रक्रिया में नाक के माध्यम से औषधियों का प्रयोग किया जाता है, जो मस्तिष्क और नाक के क्षेत्र का शोधन करता है।
      • रक्तमोक्षण (रक्त शोधन): यह प्रक्रिया रक्त को शुद्ध करने के लिए की जाती है, जिससे त्वचा के रोगों का उपचार होता है।

      2. हर्बल औषधियाँ:

      आयुर्वेद में सोरायसिस के उपचार के लिए अनेक प्रकार की हर्बल औषधियों का उपयोग किया जाता है। ये औषधियाँ प्राकृतिक रूप से दोषों को संतुलित करने, रक्त को शुद्ध करने और त्वचा की मरम्मत करने में सहायक होती हैं।

      • नीम: एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुणों से युक्त, नीम त्वचा के रोगों के उपचार में अत्यंत प्रभावी है।
      • मंजीष्ठा: एक शक्तिशाली रक्तशोधक है, जो त्वचा की बीमारियों के उपचार में उपयोगी है।
      • हल्दी: इसमें सूजनरोधी गुण होते हैं, जो त्वचा की सूजन को कम करने और खुजली को दूर करने में सहायक होते हैं।

      3. आहार और जीवनशैली:

      आयुर्वेद में आहार और जीवनशैली का विशेष महत्व है। सोरायसिस के उपचार में आहार और जीवनशैली में बदलाव अनिवार्य है। आयुर्वेद के अनुसार, व्यक्ति को ऐसे खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए जो शरीर के दोषों को संतुलित करें और त्वचा की मरम्मत में सहायक हों। साथ ही, योग और ध्यान का अभ्यास मानसिक शांति और तनाव को कम करने में सहायक होता है, जो सोरायसिस के उपचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

      सोरायसिस के उपचार में आयुर्वेद की भूमिका

      आयुर्वेदिक चिकित्सा में सोरायसिस का उपचार पूरी तरह से प्राकृतिक और बिना किसी साइड इफेक्ट्स के होता है। इसमें केवल रोग के लक्षणों का उपचार नहीं होता, बल्कि रोग के मूल कारण का निवारण किया जाता है। शासकीय आयुर्वेद महाविद्यालय और चिकित्सालय, रीवा में मरीजों की समस्याओं को ध्यान में रखते हुए, उन्हें व्यक्तिगत रूप से उपचार योजनाएँ प्रदान की जाती हैं।

      सोरायसिस के लिए आयुर्वेदिक उपचार के लाभ:

      • त्वचा की प्राकृतिक चमक को बहाल करना: आयुर्वेदिक उपचार त्वचा को भीतर से पोषण प्रदान करता है, जिससे त्वचा की प्राकृतिक चमक वापस आती है।
      • सूजन और खुजली को कम करना: आयुर्वेदिक औषधियाँ और उपचार त्वचा की सूजन और खुजली को कम करने में सहायक होते हैं।
      • शरीर से विषैले तत्वों को बाहर निकालना: पंचकर्म और अन्य शोधन विधियाँ शरीर से विषैले तत्वों को बाहर निकालकर स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में सहायक होती हैं।
      • मानसिक शांति और तनाव प्रबंधन: योग, ध्यान, और प्राणायाम के माध्यम से मानसिक शांति प्राप्त की जा सकती है, जो सोरायसिस के उपचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

      निष्कर्ष

      सोरायसिस का आयुर्वेदिक उपचार केवल रोग के लक्षणों का निवारण नहीं करता, बल्कि यह शरीर, मन और आत्मा के संतुलन को बहाल करता है। शासकीय आयुर्वेद महाविद्यालय और चिकित्सालय, रीवा में विशेषज्ञ चिकित्सकों की देखरेख में सोरायसिस का सफल उपचार किया जाता है। यहाँ के आयुर्वेदिक उपचार और पंचकर्म विधियों के माध्यम से मरीजों को प्राकृतिक और सुरक्षित उपचार प्रदान किया जाता है, जो उनके स्वास्थ्य को संपूर्ण रूप से बेहतर बनाने में सहायक होते हैं।

      यदि आप या आपका कोई प्रियजन सोरायसिस से पीड़ित हैं और आयुर्वेदिक मार्ग से इसका उपचार करना चाहते हैं, तो आज ही शासकीय आयुर्वेद महाविद्यालय और चिकित्सालय, रीवा से संपर्क करें और अपने स्वास्थ्य को बेहतर बनाने की दिशा में पहला कदम उठाएँ।

      संपर्क विवरण:

      • फोन: +91-9575522246 | 07662299159
      • पता: Nipaniya Rd, Pushpraj Nagar, Rewa Madhya Pradesh 486001
      • वेबसाइट: www.gacrewa.org.in

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